“मंदिर आस्था के लिए हैं, कमाई के लिए नहीं”: अखिलेश का BJP पर हमला

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि सरकारी प्रशासन के माध्यम से मंदिरों पर अप्रत्यक्ष कब्जा किया जा रहा है। उन्होंने इस दखल को धार्मिक परंपरा और श्रद्धा पर सीधा प्रहार बताया।

अखिलेश यादव ने कहा कि सैकड़ों वर्षों से मंदिरों का संचालन आस्था, परंपरा और निःस्वार्थ सेवा भाव के साथ होता आया है। परन्तु भाजपा सरकार इसे राज्य नियंत्रण में लाकर धार्मिक स्थलों का पेशेवर व्यावसायीकरण कर रही है। उनका आरोप है कि जो लोग वर्षों से मंदिर प्रबंधन में जुटे हैं, उनसे उनका हक छीना जा रहा है और यह बताया जा रहा है कि वे अयोग्य हैं।

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“बेलपत्र तक बेच डाले प्रशासनिक अधिकारी”

सपा प्रमुख ने तीखे आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ अधिकारियों ने मंदिर में चढ़े बेलपत्र तक बेच डाले। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने मंदिरों में सेवा को कमाई का जरिया बना दिया है। जहां श्रद्धालु दान करते हैं, उसका उपयोग अब धार्मिक कार्यों की जगह पेशेवर फायदे के लिए किया जा रहा है। उन्होंने पूछा – क्या कोई प्रशासनिक अधिकारी वह भावना रख सकता है जो किसी सच्चे पुजारी या न्यासी में होती है?

“यह योजना है, संयोग नहीं”

अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि यह सब कोई संयोग नहीं, बल्कि सोची-समझी रणनीति है। भाजपा धर्म को राजनीति और मुनाफे का माध्यम बना रही है। मंदिरों पर प्रशासनिक नियंत्रण धीरे-धीरे पूरे राज्य में फैलाया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “धर्म भलाई के लिए होता है, कमाई के लिए नहीं।”

“ईश्वर के कृपापात्र शासन के कृपापात्र नहीं हो सकते”

सपा अध्यक्ष ने कहा कि भक्ति और प्रबंधन को एक साथ नहीं मिलाया जा सकता। श्रद्धा को नियमों से नहीं, भावनाओं और परंपराओं से संचालित किया जाना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सत्ता में आने के बाद से मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लेने की क्रमिक प्रक्रिया शुरू कर चुकी है, जो भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है।

अखिलेश यादव के ये आरोप ना केवल एक राजनीतिक बयान हैं, बल्कि एक बड़ी सांस्कृतिक बहस की ओर भी इशारा करते हैं – क्या धार्मिक स्थलों का संचालन सरकारों द्वारा किया जाना चाहिए या परंपरागत न्यासों द्वारा? यह मुद्दा आने वाले चुनावों में भी अहम भूमिका निभा सकता है, जहां आस्था और प्रशासन के बीच संतुलन की मांग तेज हो सकती है।

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